11 नवम्बर 2017 की शाम को मैं अपनी पत्नी माधुरी जी और नातिन अनन्या के साथ पारिवारिक कार्य से रायपुर पहुंचा, मेरी बड़ी बेटी डा. संगीता अग्रवाल वहाँ रहती हैं। रायपुर अक्सर जाता हूँ लेकिन इस बार का यह छोटा सा प्रवास यादगार बन गया. हुआ यह कि हमारे दामाद डा. केदारनाथ ने प्रस्ताव रखा, 'पापाजी, आज रात का डिनर छत्तीसगढ़ क्लब में लेंगे क्या?' 'चलो.' मैंने कहा. हम सब रात को नौ बजे वहां पहुंचे. वहां मेरे मित्र श्री संजय अलंग मिले. श्री संजय प्रशासनिक अधिकारी होने के अतिरिक्त समर्थ कवि हैं, सहृदय मनुष्य हैं. मुझसे बोले, 'मुझे आत्मकथा का पहला खंड मिल गया, मैंने पढ़ लिया. अच्छा लगा. अब दूसरा और तीसरा खंड पढ़ना है मुझे.' 'बिलासपुर पहुँच कर भेजता हूँ.' मैंने कहा और पूछा, 'आप बिलासपुर कब आ रहे हैं?' 'कल ही जा रहा हूँ लेकिन हमें रतनपुर जाना है इस कारण इस बार नहीं, अगली बार आपके पास अवश्य आऊंगा.' वे बोले. और अन्दर जाते ही मेरे एक और मित्र श्री तेजिंदर गगन, जो दूरदर्शन के डिपुटी डायरेक्टर जनरल रहे हैं और बहुत अच्छे लेखक-कवि हैं, मिल गए. उनसे मिलना हमेशा सुखद...