(१) शिव कहते हैं - 'सर्वक्षेत्रेषु भूपृष्ठेकाशीक्षेत्रंचमेवपु:।' (भूलोक के समस्त क्षेत्रों में काशी साक्षात् मेरा शरीर है।) एक श्रुति के अनुसार महाराज सुदेव के पुत्र राजा दिवोदास ने गंगा तट पर वाराणसी नामक नगर बसाया था। एक बार भगवान शंकर ने देखा कि पार्वती जी को मायके (हिमालय-क्षेत्र) में रहने में संकोच होता है तो उन्होंने किसी दूसरे सिद्धक्षेत्र में उनके आवास की योजना बनाई। उन्हें काशी प्रिय लगी, वे यहां आ गए। भगवान शिव के सान्निध्य में रहने की इच्छा से देवता भी काशी में आ कर रहने लगे। देवताओं के आगमन के कारण काशी नरेश दिवोदास का राजधानी का आधिपत्य समाप्त हो गया और वे बड़े दु:खी हुए। उन्होंने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी से वरदान मांगा- 'देवता देवलोक में रहें, पृथ्वी मनुष्यों के लिए रहे।' सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया- 'एवमस्तु'। फलस्वरूप भगवान शंकर और देवगणों को काशी छोड़ना पड़ा। शिवजी वापस मन्दराचलपर्वत पर चले गए किन्तु काशी के प्रति उनका आकर्षण कम...