'हमेशा हनीमून' (Honeymoons are forever) उत्सव नहीं है, एक सोच है। साथ रहने का सुख, बतियाने का सुख, एक-दूसरे का हाथ थाम कर गुदगुदी महसूस करने का सुख और 'हमारा साथ बना हुआ है' की तसल्ली का सुख। लहर में कांपती नाव में कदम रखती पत्नी को हाथ से सहारा देकर बुलाने के उपक्रम में कहीं दूर एक मधुर स्वर कानों में गूँजता सा है, 'कहाँ ले चले हो, बता दो मुसाफिर, सितारों के आगे, ये कैसा जहां है...' हनीमून की बात इसलिए निकली, कि ट्रेन में मिली एक नवयुवती ने हमसे पूछा, 'आप लोग नैनीताल क्यों जा रहे हैं, घूमने?' 'घूमने नहीं, हनीमून मनाने।' मैंने उत्तर दिया। उसके चेहरे पर विस्मय मिश्रित मुस्कान फैल गयी, आँखें तनिक बड़ी हो गयी, गाल और कान गुलाबी हो गए। फिर उसने मेरे पके बालों पर नज़र डाली, उसके बाद माधुरी जी के काले बालों पर नजर घुमायी, ऐसा लगा जैसे उसके मन में कोई सवाल आया लेकिन उसकी ज़ुबान नहीं खुली, वह चुप रह गयी और मुस्कुराते हुए ट्रेन के बाहर देखने लगी। हम दोनों ने भी एक-दूसरे को देखा और उस लड़की की तरफ देखने लगे। जब माहौल सहज हो गया तो मैंने बालिका को समझाया, ...