दिल की बात : ======== 'दिल है कि मानता नहीं...' ये गीत आपने सुना होगा. बचपन से ही मेरी घूमने की चाहत रही लेकिन दिल की दिल में रह जाती थी. रिश्तेदारी के अलावा कहीं जाने को नहीं मिलता था. रिश्तेदारी की जगहें भी आसपास की थी जैसे, गौरेला, जैथारी, मनेन्द्रगढ़, सतना, रीवा, जबलपुर और बस. घर में बड़ों का आतंक इतना था कि उनकी अनुमति के बिना घर से निकल नहीं सकते थे और किसी जगह अपनी मर्जी से जाने की अनुमति नहीं मिलती थी. एक घटना याद आ रही है, मैं नवमी कक्षा में पढ़ रहा था, स्कूल में एक नाटक खेला गया, भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखित 'सबसे बड़ा आदमी', जिसमें शंकर का पात्र मैंने निभाया था. उस नाटक को मात्र १२८ किलोमीटर दूर स्थित सारंगढ़ में संभागीय नाट्य प्रतिस्पर्धा में खेला जाना था. मुझे बड़ों की 'परमीशन' नहीं मिली, मैं नहीं जा पाया, अचानक एक महत्वपूर्ण पात्र के वहां न जाने से निर्देशक को जो असुविधा हुई होगी, नाटक की जो दुर्दशा हुई होगी, उसका अनुमान आप लगा सकते हैं. पहाड़ों को समीप से देखने की अभिलाषा और समुद्र की उठती लहरों को देखने की इच्छा दिल में रखे हुए मेरी किशोरावस्था बीत गय...