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कहाँ चले हो...बता दो मुसाफिर

  कहाँ ले चले हो... बता दो मुसाफिर   ======================= दिल की बात :   ========   वैसे तो ' होम स्वीट होम ' में जो मिठास है , उसका अलग आनंद है लेकिन जब मिठास अधिक बढ़ जाती है तब कुछ चटपटा खाने का दिल करता है. इस चटपटी चाट का सुख लेने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है , दूर , बहुत दूर , जहाँ जाकर मन आल्हादित हो जाए , प्रसन्न हो जाए. ऐसी ही कुछ यात्राओं का ज़िक्र मैंने अपने पूर्ववर्ती यात्रा वृत्तान्त की पुस्तक ' मुसाफिर....जाएगा कहाँ ' में किया था.   उसके बाद भी यात्राएं होती रही , मैं घर से बाहर और कुछ देखने-जानने की खोज में निकलता रहा. सन २०२० और २०२१ का समय करोना संक्रमण की भेंट चढ़ गया. एक तो संक्रमण का खतरा , ऊपर से आवागमन के साधन भी कम हो गये. वैसे , सड़क या वायुमार्ग के बदले मुझे रेल की पटरियां अधिक पसंद हैं. रेल यात्रा में सिकुड़ कर बैठने की तकलीफ नहीं झेलनी पड़ती , दूसरे की छोड़ी हुई सांस को लेने की मज़बूरी नहीं होती , जब मन पड़े आराम से लेट जाओ , जब मन पड़े सामने बैठे अनजान व्यक्ति से बातें करो या चुपचाप उसे ताकते-निरखते रहो. जब भूख लगे , पास में रख...