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जुलाई, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यात्रा वृत्तांत का प्रयोजन

यात्रा करना मनुष्य का शौक माना जाता है जबकि यह अनिवार्यता भी होती है. शौक उनका है जो आर्थिक और शारीरिक रूप से सक्षम है, दुनिया को अपनी आँखों से देखना चाहते हैं. अनिवार्यता उनकी है जिन्हें मंदिर में प्रार्थना या मनौती करनी है, रिश्तेदारी या नौकरी पर जाना है, इलाज़ करवाना है, अपना माल बेचने के लिए दर-दर भटकना है. मेरे लिये यात्रा करना अपने जीवन के शेष रह गये काम को निपटाना है. जब घूमने-फिरने के दिन थे तब जेब खाली थी, अब जब मेरी जेब में ख़र्च करने के लिए कुछ है तो मेरे साठोत्तर शरीर की परेशानियां हाज़िर हैं. फिर भी, मैं उतना अशक्त नहीं कि चल-फिर न सकूं इसलिए जब भी शहर से बाहर निकलने का कोई अवसर मुझे मिलता है तो मैं ट्रेन में बाद में बैठता हूँ, उस जगह पर दिमागी तौर पर पहले ही पहुँच जाता हूँ. 'मुसाफिर.....जाएगा कहाँ ' में विगत दस वर्षों की यात्राओं पर मेरे द्वारा लिखे गए कुछ संस्मरण हैं. इन यात्राओं में मेरी दृष्टि स्थूल पर कम थी, मानवीय व्यवहार पर अधिक. इस यात्राविवरण को पढ़कर आपका दिल भी घूमने जाने के लिए मचल पड़े तो समझिए, मेरा लिखना सार्थक हो गया. तो, चलिए, मेरे साथ आप भी सैर ...

सेठानी ट्रेन में नहीं चढ़ी

सेठानी ट्रेन में नहीं चढ़ी  ================          ईशा फ़ाउन्डेशन द्वारा आयोजित बद्रीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री की ध्यान-यात्रा संपन्न होने के पश्चात मैं अपनी पत्नी माधुरी के साथ नई दिल्ली वापस आया। दिल्ली हम लोग २४ अक्टूबर २००८ को अल-सुबह पहुंचे, हमारी वापसी ट्रेन ‘सम्पर्क क्रान्ति’ शाम को साढ़े पांच बजे थी, इसलिए हम दोनों दिल्ली के एक उपनगर ‘द्वारका’ में माधुरी की बड़ी बहन विद्या जवाहर अग्रवाल से भेंट करने चले गए। बिलासपुर जाने वाली यह ट्रेन निज़ामुद्दीन से आरंभ होती है जो द्वारका से लगभग डेढ़ घंटे की दूरी पर है इसलिए थोड़ी अधिक ‘मार्जिन’ लेकर दोपहर तीन बजे कार में स्टेशन के लिए रवाना हो गए। रास्ते में लगातार ट्रेफ़िक जाम होता रहा और जब हम लोग स्टेशन पहुंचे तब हमारी घड़ी में पांच बजकर पच्चीस मिनट हो चुके थे। स्टेशन में कुली ने हमें समझाया कि प्लेटफ़ार्म दूर है, हम लोग जब तक पहुंचेंगे तब तक गाड़ी जा चुकी होगी- ‘आप कहें तो कोशिश करें।’ ‘कोशिश करो।’ मैंने कहा।            ठंड के दिन थे, हिमालय की पन्द्रह दिवसीय यात्रा थी, इसलिए साथ मे...

योग की संयोग यात्रा

योग की संयोग यात्रा : ==============           तमिलनाडु में चेन्नई के बाद यदि किसी शहर को भारत भर में जाना जाता है तो वह है कोयम्बत्तुर. इसे मशीनों का उत्पादक नगर कहते हैं। अब कोयम्बत्तुर की प्रसिद्धता में एक स्थान और जुड़ गया है , सद्गुरु जग्गी वासुदेव द्वारा संचालित ईशा योग केंद्र जिसे वहां की बोलचाल में ' ईशा ' कहते हैं। हमारे पुत्र कुंतल जब वहां पूर्णकालिक स्वयंसेवक बन गए तो हमारे मन में यह प्रश्न अक्सर आता था कि ऐसा कौन सा आकर्षण है जिसके वशीभूत होकर उन्होंने गृहस्थी त्याग दी और योगी बन गए. उस बात को समझने के लिए उस प्रकल्प में घुसना ज़रूरी था इसलिए हमने वहां आयोजित आठ दिवसीय कार्यक्रम 'Wholeness' में अपना पंजीकरण करवाया और कोयम्बत्तुर पहुँच गए।            योग प्रशिक्षण का कार्यक्रम कोयंबत्तुर के वेलियंगिरी पहाड़ की तलहटी में बसे पुंडी ग्राम में स्थापित ईशा योग केंद्र के स्पंद सभागार में चल रहा था जिसमें लगभग तीन सौ स्त्री-पुरुष योग की प्राचीन विधा को सद्गुरु जग्गी वासुदेव के मार्गनिर्देशन में अत्यंत मनोयोग से सीख रहे ...